गंगा की सफाई के लिए हरिद्वार में गंग नहर को बंद किया गया है. जिसके कारण गंगा में स्नान और अन्य दूसरे धार्मिक अनुष्ठान करने आने वाले श्रद्धालुओं को परेशानी हो रही है.
उत्तराखंड के हरिद्वार में हर साल की तरह इस साल भी गंगा की सफाई करने के लिए दशहरे से छोटी दीपावली तक गंग नहर को बंद किया गया है. उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग द्वारा गंगा जी की आरती के समय 2 फुट जल की सप्लाई की जा रही है, मगर गंगा बंदी होने के कारण देश के कई राज्यों से आने वाले यात्रियों को इससे काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. पर्याप्त मात्रा में जल ना होने के कारण हरिद्वार आकर गंगा में स्नान करने वाले और अन्य दूसरे धार्मिक अनुष्ठान करने आने वाले श्रद्धालुओं को मायूसी ही हाथ लग रही है. वहीं यह श्रद्धालु प्रशासन से व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की मांग कर रहे हैं.
हर की पौड़ी ब्रह्मकुंड और आसपास के क्षेत्र में श्रद्धालुओं को डुबकी लगाने लायक जल ना मिलने के कारण श्रद्धालु मायूस नजर आ रहे हैं. श्रद्धालुओं का कहना है कि गंगा में पानी न होने के कारण उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. गंगा में सफाई व्यवस्था भी कहीं नजर नहीं आ रही है. श्रद्धालुओं का यह भी कहना है कि सफाई करने के कई और भी विकल्प हैं. सफाई करने के लिए पानी रोकने की कोई आवश्यकता नहीं है. श्रद्धालु आस्था से हरिद्वार आते हैं और यहां आकर गंगा में डुबकी लगाने लायक भी पानी नहीं मिलता है तो श्रद्धालु कहीं ना कहीं मायूस होते हैं. श्रद्धालुओं ने सरकार और प्रशासन से मांग करते हुए कहा कि गंगा में पर्याप्त मात्रा में जल छोड़ जाए.
सफाई के लिए हुई गंगा बंदी
पंडित जितेंद्र शास्त्री का कहना है कि ‘हर वर्ष गंगा की सफाई के नाम पर दशहरे से लेकर छोटी दीपावली तक गंगा बंदी की जाती है. इससे श्रद्धालुओं को काफी परेशानी होती है और साथ ही हरिद्वार में अस्थि विसर्जन करने आने वाले श्रद्धालुओं भी मायूस होते हैं. गंगा में जल ना होने के कारण हरिद्वार की रौनक भी खत्म हो जाती है. गंगा जी की मर्यादा का ध्यान रखते हुए हम सरकार और हरिद्वार जिला प्रशासन से मांग करते हैं कि लोगों की आस्था और भावना को देखते हुए 2 फुट जल गंगा में हमेशा रहना चाहिए जिससे श्रद्धालुओं को परेशानी ना हो.’
श्रद्धालुओं को हो रही परेशानी
गंगा बंदी के कारण पौराणिक ब्रह्मकुंड में भी गंगा का जल नहीं है, यहीं कारण है कि हरिद्वार आने वाले श्रद्धालुओं के हाथ मायूसी ही लगती है. हर बार लाख दावे तो किए जाते हैं मगर दावों के विपरीत जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही नजर आती है और हर बार श्रद्धालुओं को हरिद्वार से वार्षिक गंगा बंदी के दौरान मायूस लौटना पड़ता है.