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‘…जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है…’ऑपरेशन सिलक्यारा’, हिम्मत और हौसले की कहानी बयां करता है

उत्तराखंड की निर्माणाधीन सुरंग में फंसे हुए मजदूर आखिरकार उससे बाहर आ गए हैं. मजदूरों के बाहर आने से सभी ने चैन की सांस ली है.

‘हार हो जाती है जब मान लिया जाता है, जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है’. ये लाइनें मशहूर शायर शकील आजमी ने लिखी हैं. उत्तराखंड की सुरंग में फंसे मजदूरों पर ये लाइनें बिल्कुल ठीक बैठती हैं. इन 41 मजदूरों ने 17 दिनों तक सुरंग में फंसे रहने के बाद भी अपना हौसला नहीं छोड़ा और जीने की आस बनाए रखी. इसी का नतीजा रहा कि मंगलवार (28 नवंबर) को सभी मजदूरों को सकुशल सुरंग से बाहर निकाल लिया गया.

उत्तराखंड के उत्तराकाशी जिले के सिलक्यारा में एक सुरंग ढह गई. इस हादसे में सुरंग में 41 मजदूर फंस गए थे, जो 17 दिनों तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद मंगलवार (28 नवंबर) को उससे बाहर आए. भारतीय सेना, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ जैसी विभिन्न एजेंसियों ने मिलकर संयुक्त बचाव अभियान चलाया, जिसके बाद ये मजदूर पहाड़ का सीना ‘चीरकर’ सुरंग से बाहर निकल आए. सभी मजदूर स्वस्थ हालात में बताए गए हैं.

पीएम मोदी ने दी रेस्क्यू टीम को बधाई

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सुरंग से पहला मजदूर रात 7.56 बजे बाहर आया. इसके बाद एक-एक करके सभी मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिलक्यारा रेस्क्यू ऑपरेशन की सफलता के लिए बचावकर्मियों की सराहना की. उन्होंने कहा, ‘मैं इस बचाव अभियान से जुड़े सभी लोगों के जज्बे को सलाम करता हूं. उनकी बहादुरी ने हमारे मजदूर भाइयों को नया जीवन दिया है.’ ऐसे में आइए आपको ‘ऑपरेशन सिलक्यारा’ की पूरी कहानी बताते हैं.

सुरंग में फंसे मजदूर, मिलने पहुंचे सीएम

12 नवंबर को दिवाली वाले दिन उत्तराखंड के उत्तरकाशी में ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राजमार्ग पर सिल्कयारा-दंदालगांव सुरंग में भूस्खलन के बाद 41 मजदूर फंस गए. आनन-फानन में उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को घटना की जानकारी मिली और वह अगले ही दिन मजदूरों से मिलने घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने ऑक्सीजन सप्लाई पाइप के सहारे मजदूरों से बात की और रेस्क्यू तेज करने का आदेश दिया.

हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग की हुई शुरुआत

रेस्क्यू ऑपरेशन के शुरुआती चरण में 14 नवंबर से हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग की शुरुआत की गई. इसके लिए ऑगर मशीन की मदद ली गई, जिसके जरिए सुरंग खोदकर उसमें 800-900 एमएम की स्टील पाइप को फिट करना था. हालांकि, मलबे की चपेट में आकर दो मजदूर घायल हो गए. मजदूरों को जिस पाइप के जरिए ऑक्सीजन पहुंचाई जा रही थी, ठीक उसी पाइप के सहारे उन्हें खाना, पानी और दवाएं भी पहुंचाई जाने लगीं.

दिल्ली से मंगाई गई अडवांस्ड ड्रिलिंग मशीन

रेस्क्यू ऑपरेशन के शुरुआती दिनों में ज्यादा सफलता नहीं मिल रही थी. ड्रिलिंग मशीन का भी कुछ खास फायदा होता हुआ नजर नहीं आ रहा था. अंदर फंसे मजदूरों की हालत को देखते हुए ‘एनएचआईडीसीएल’ ने दिल्ली से अडवांस्ड ऑगर मशीन मंगाई. समय की किल्लत को देखते हुए इसे एयरलिफ्ट कर यहां पहुंचाया गया. 16 नवंबर को नई ड्रिलिंग मशीन को असेंबल कर इंस्टॉल किया गया. लेकिन रात में जाकर इसके जरिए रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ.

पीएम ने हौसला बढ़ाने का दिया निर्देश, बचाने के लिए तैयार हुए पांच प्लान

नई ऑगर मशीन से अभी 24 मीटर ही ड्रिलिंग हुई थी कि इसमें भी गड़बड़ी आ गई. इसके बाद इंदौर से नई ऑगर मशीन पहुंचाई गई. फिर 17 नवंबर को ऑपरेशन रोकना पड़ा, क्योंकि सुरंग के भीतर दरारें देखने को मिलीं. अगले दिन प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के अधिकारियों और एक्सपर्ट्स ने मजदूरों को बचाने के लिए वर्टिकल ड्रिलिंग जैसे वैकल्पिक तरीकों समेत पांच निकासी योजनाएं तैयार कीं.

सबसे ज्यादा जोर वर्टिकल ड्रिलिंग पर ही दिया गया. प्रधानमंत्री मोदी ने सीएम धामी से बात की और मजदूरों का हौसला बनाए रखने को कहा. 21 नवंबर को पहली बार सुरंग में फंसे मजदूरों की वीडियो सामने आई. इसमें उन्हें बातचीत करते हुए देखा गया. इसी दिन बाल्कोट इलाके से भी सुरंग में ड्रिलिंग का काम शुरू हुआ. फिर अगले दिन 45 मीटर तक हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग हुई, जब 12 मीटर की दूरी ही बची हुई थी, तभी ऑगर मशीन में एक बार फिर खराबी आ गई.

ऑगर मशीन हुई खराब, सुरंग में अटकी जान

सबसे ज्यादा जोर वर्टिकल ड्रिलिंग पर ही दिया गया. प्रधानमंत्री मोदी ने सीएम धामी से बात की और मजदूरों का हौसला बनाए रखने को कहा. 21 नवंबर को पहली बार सुरंग में फंसे मजदूरों की वीडियो सामने आई. इसमें उन्हें बातचीत करते हुए देखा गया. इसी दिन बाल्कोट इलाके से भी सुरंग में ड्रिलिंग का काम शुरू हुआ. फिर अगले दिन 45 मीटर तक हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग हुई, जब 12 मीटर की दूरी ही बची हुई थी, तभी ऑगर मशीन में एक बार फिर खराबी आ गई.

ऑगर मशीन के लोहे की वजह से आई बाधा को 23 नवंबर को दूर कर लिया और फिर बचाव अभियान शुरू हुआ. अधिकारी सुरंग खोदते-खोदते 48 मीटर तक पहुंच गए, मगर फिर दरारें रिपोर्ट हुईं. अगले दिन फिर ऑपरेशन शुरू हुआ, मगर इस बार ऑगर मशीन को परेशानी का सामना करना पड़ा. इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट ऑर्नल्ड डिक्स ने बताया कि ऑगर मशीन खराब हो गई और अब आगे इससे काम नहीं लिया जा सकता है.

जब मजदूरों तक पहुंची मदद

सुरंग में फंसे लोगों को बाहर निकालने के काम में 27 नवंबर से तेजी आना शुरू हुआ. दरअसल, सुरंग को मैन्युअली यानी हाथों से खोदने के लिए 12 रैट होल माइनिंग एक्सपर्ट के एक ग्रुप को बुलाया गया. इनका काम आखिरी के 10 से 12 मीटर के फासले को खत्म करना था. मैन्युअल ड्रिलिंग के बाद बचावकर्मियों ने सुरंग में एक पाइप फिट किया. इस तरह वह 57 मीटर की दूरी तक पहुंच गए. इस तरह मजदूरों तक पहुंचने का काम पूरा हुआ.

अधिकारियों के मुताबिक, 60 मीटर के बचाव शॉफ्ट में स्टील के पाइप से इन मजदूरों को बिना पहिए वाले स्ट्रेचर के बाहर निकाला गया. मजदूरों को एक-एक करके 800 मिमी के उन पाइपों से बनाए गए रास्ते से बाहर निकाला गया जिन्हें अवरूद्ध सुरंग में फैले 60 मीटर मलबे में ड्रिल करके अंदर डाला गया था. मजदूरों को बाहर निकाले जाने के बाद एंबुलेंस के जरिए उन्हें सिलक्यारा से 30 किलोमीटर दूर चिन्यालीसौड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया.

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