सबको साथ लेकर चलने एवं सभी को सम्मान देने की वजह से कांग्रेस का कुनबा बढ़ रहा है
दिल्ली: ये विशाल पाटिल हैं। कांग्रेस के कार्यकर्ता और फिर नेता बनें। महाराष्ट्र की सांगली लोकसभा क्षेत्र से टिकट चाहते थें। गठबंधन में सीट शिवसेना उद्धव ठाकरे को चली गई। निर्दलीय लड़ गए। एक लाख से ज़्यादा वोटों से चुनाव जीत गए, जीतने के बाद दिल्ली पहुंचे और विजय का प्रमाण पत्र ले जाकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी के हाथों में थमा दिया।
राहुल गांधी हतप्रभ थें। कांग्रेस के अच्छे दिनों में जिन्हें सब कुछ मिला, समय बिगड़ते ही एक एक कर सब हाथ छुड़ाते चले गए। जिसे पार्टी ने कुछ न दिया, जिस दौर में एक एक लोकसभा सीट महत्वपूर्ण हो गया है, वैसे में विशाल सत्ता के साथ न जाकर कांग्रेस के साथ गए। इसे वफादारी कहते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अच्छी पकड़ रखने वाले गौतमबुद्ध नगर में ग्रेटर नोएडा निवासी किसान नेता वीरेंद्र सिंह गुड्डू गुर्जर इस बात को बहुत लंबे समय से कह रहे हैं कि कांग्रेस में ऐसे वफादार नेताओं और कार्यकर्ताओं की अब भी बड़ी तादाद हैं। कांग्रेस नेतृत्व को अब उन्हें चिन्हित कर आगे लाना चाहिए। कांग्रेस को बूथ स्तर पर संगठन निर्माण और कैडर प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने चाहिए, बड़ी संख्या में जिन नेताओं को संगठन में कुछ लोगों की गुटबाजी की गंदी राजनीति के चलते छह छह साल के लिए निष्कासित किया गया है और उनमें से जिन नेताओं ने कांग्रेस में भरोसा होने के चलते पार्टी नही बदली है उनकी सूची तैयार कर निष्कासन रद्द कर कांग्रेस से वापस जोड़ने का काम किया जाए।
निर्दलीय सांसद विशाल पाटिल के पुनः कांग्रेस से जुड़ने में मुख्य वजह सम्मान है क्योंकि पद और पैसे से पहले हम भारतीयों को सम्मान चाहिए होता है, इस भरपूर मान सम्मान के चलते लद्दाख, जम्मू कश्मीर, बिहार, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों से कुछ सांसदों व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के जल्द ही उचित समय पर कांग्रेस इंडिया गठबंधन से जुड़ने की आशा है।