आर्थिक शोध संस्थान वैश्विक व्यापार शोध पहल (जीटीआरआई) का मानना है कि भारत को अपने क्रिप्टो उत्पादों और सेवाओं से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए एक ‘रेग्युलेटरी सैंडबॉक्स’ दृष्टिकोण पर विचार करने की जरूरत है. रेग्युलेटरी सैंडबॉक्स आमतौर पर नियंत्रित/परीक्षण के नियामकीय माहौल में नए उत्पादों या सेवाओं के ‘लाइव’ परीक्षण को संदर्भित करता है. इसके लिए नियामक परीक्षण के सीमित उद्देश्य के लिए कुछ छूट की अनुमति दे सकते हैं (या नहीं भी दे सकते हैं).
जीटीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका में नियमित वित्तीय प्रणाली में क्रिप्टो की स्वीकार्यता के मद्देनजर यह देखने की जरूरत है कि भारत में आने वाले महीनों में क्रिप्टो नीति कैसे विकसित होती है. इसमें कहा गया है कि नई अमेरिकी कार्रवाई का वैश्विक पूंजी प्रवाह, सोने की कीमत, विदेशी व्यापार पर प्रभाव पड़ेगा. ऐसे में हमारे लिए इसको लेकर बिना किसी नियमन के रहना संभव नहीं है.
रिपोर्ट कहती है, ‘‘भारत नवीन क्रिप्टो-संबंधित उत्पादों और सेवाओं के नियंत्रित परीक्षण की अनुमति देते हुए रेग्युलेटरी सैंडबॉक्स दृष्टिकोण अपनाने पर विचार कर सकता है. इसे जोखिम प्रबंधन के साथ नवोन्मेषण को संतुलित करने और ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी में प्रगति को अपनाने की जरूरत हो सकती है. इसमें कहा गया है कि किसी भी दृष्टिकोण में मुख्य मुद्दा यह होना चाहिए कि क्रिप्टो मुद्राओं का फायदा धन शोधन या आपराधिक संगठनों के वित्तपोषण जैसी अवैध गतिविधियों के लिए किया जा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अबतक अमेरिकी विनियमन इस मुख्य मुद्दे से नहीं निपटता है.
जीटीआरआई के सह-संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, इन अनिश्चितताओं के बावजूद भारत में पीयर-टू-पीयर ट्रेडिंग और ऑफशोर एक्सचेंजों के माध्यम से एक क्रिप्टो बाजार मौजूद है. हालांकि, निवेशकों को कानूनी सुरक्षा उपायों की कमी के कारण जोखिम का सामना करना पड़ता है.